नाटिंन्ग्हम शहर के मध्य स्थल में मार्केट स्क्वेर तथा 'कासल' के साथ यह सफ़र शुरू हुआ था। फिर चल पड़े थे चरों दिशाओं की सैर करने। दक्षिण में वेस्ट ब्रिज्फोर्ड, पश्चिम में वोल्लाटन, उत्तर में 'नयूस्टएड एबी' देख लिया। 'एबी' से लौटकर नाटिंन्ग्हम आते हुए आज पहले देखते हैं बेस्फोर्ड का साईं धाम मंदिर। उसके बाद अंतिम पड़ाव होगा पूरभ में कार्लटन का मंदिर। यहीं हमारा छोटासा सफ़र समाप्त होगा।
ॐ श्री साईं नाथायनामः
शिर्डी के बाबा बेसफोर्ड पधारे करीब पंध्रह साल पहले। तबसे उन्होंने भक्तों को अपनी ओर समेट लिया और साईं धाम का प्रभाव बढ़ता ही चला गया। हर हफ्ते शनिचर के दिन यहाँ पर भक्तों की भीड़ होती है। सब मिलकर भजन कीर्तन करते हैं, पंडितजी का सुन्दर प्रवचन सुनते हैं, आरती होती है और प्रशाद का खाना खाकर ही सब घर को लौटते हैं। पर्व त्यौहार सभी इकट्ठे मनाते हैं। हाल ही में गणपति भगवान् की दस दिन तक पूजा होती रही और धूम धाम से गणेश चतुर्थी मनाई गयी। इसी बहाने यहाँ के देशवासियों ने मिलजुलकर कार्यक्रम मनाए, गाने गाए, रंगोलियाँ बनाई, बच्चओं की प्रतियोगिताएँ राखी, सभी ने खूब आनंद उठाया। इस जगह पर सुख शान्ति सुकून है। मंदिर चाहे छोटासा हो परन्तु भक्तों के विशाल हृदय हैं और साईं दर्शन करके मन प्रसन्न हो उठता है, मन की मांगे पूरी होती ही हैं। यहाँ रहते हुए जब मन चाहे तब शिर्डी जाना तो मुमकिन नहीं मगर इस साईं धाम में भी वही अजूबा अदभुद प्रभाव है जिसकी ओर हम खींचे चले जाते हैं।
कार्लटन का मंदिर और भी पुराना है, भव्य है, अति सुन्दर देवी देवताओं की मूर्तियों से सजा है। पूजाएँ, यज्ञ, प्रीती भोज करने की सुविधा भक्तों के लिए उपलब्ध है। कुछ बुजुर्ग पूर्व भारतीय लोग जो अनेक वर्षों से नाटिंन्ग्हम में रहते हैं, जिनके परिवार यहाँ पले बड़े हैं, उन्होंने इस मंदिर का भर संभाला है। समय से शाम की आरती, पूजा पाठ एवं त्योहारों को मनाने का कार्य पूरा करते हैं। रविवार के दिन शाम को मंदिर में भक्तों की रौनक होती है और भजन एवं भोजन का समारोह। दशहरा के दिन मंदिर के परिसर में जैसे मेला लग गया हो; उत्सव का माहोल, हिन्दू रीतियों से जुडी सामग्री खरीदने का अवसर, श्री राम की विजय एवं रावण के नाश देखकर लोगों एक दुसरे को बधाई देते हैं। कुछ ही दिनों में दिवाली का आगमन होता है। लक्ष्मी मैया की पूजा करके मिठाइयाँ बांटते हुए मंदिर के सामने खूब पटाके जलाकर उल्हास और उत्साह का माहोल मनाया जाता है। कुछ पलों के लिए ही सही सभी नाटिंन्ग्हम शहर में अपने अपने गाँव की महक पाकर महसूस करते हैं की अब यह उनका अपना घर हो गया है। अब वे नाटिंन्ग्हम के लिए अजनबी नहीं रहे।
ऐसा लगता है की इस विदेशी शहर में अपनी संस्कृति के रंग उछालकर, प्रेम भाईचारे और सद्भावना का रस घोलकर हमने नाटिंन्ग्हम को अपना लिया और इस सुन्दर शहर ने हमें।
ॐ श्री साईं नाथायनामः
शिर्डी के बाबा बेसफोर्ड पधारे करीब पंध्रह साल पहले। तबसे उन्होंने भक्तों को अपनी ओर समेट लिया और साईं धाम का प्रभाव बढ़ता ही चला गया। हर हफ्ते शनिचर के दिन यहाँ पर भक्तों की भीड़ होती है। सब मिलकर भजन कीर्तन करते हैं, पंडितजी का सुन्दर प्रवचन सुनते हैं, आरती होती है और प्रशाद का खाना खाकर ही सब घर को लौटते हैं। पर्व त्यौहार सभी इकट्ठे मनाते हैं। हाल ही में गणपति भगवान् की दस दिन तक पूजा होती रही और धूम धाम से गणेश चतुर्थी मनाई गयी। इसी बहाने यहाँ के देशवासियों ने मिलजुलकर कार्यक्रम मनाए, गाने गाए, रंगोलियाँ बनाई, बच्चओं की प्रतियोगिताएँ राखी, सभी ने खूब आनंद उठाया। इस जगह पर सुख शान्ति सुकून है। मंदिर चाहे छोटासा हो परन्तु भक्तों के विशाल हृदय हैं और साईं दर्शन करके मन प्रसन्न हो उठता है, मन की मांगे पूरी होती ही हैं। यहाँ रहते हुए जब मन चाहे तब शिर्डी जाना तो मुमकिन नहीं मगर इस साईं धाम में भी वही अजूबा अदभुद प्रभाव है जिसकी ओर हम खींचे चले जाते हैं।
कार्लटन का मंदिर और भी पुराना है, भव्य है, अति सुन्दर देवी देवताओं की मूर्तियों से सजा है। पूजाएँ, यज्ञ, प्रीती भोज करने की सुविधा भक्तों के लिए उपलब्ध है। कुछ बुजुर्ग पूर्व भारतीय लोग जो अनेक वर्षों से नाटिंन्ग्हम में रहते हैं, जिनके परिवार यहाँ पले बड़े हैं, उन्होंने इस मंदिर का भर संभाला है। समय से शाम की आरती, पूजा पाठ एवं त्योहारों को मनाने का कार्य पूरा करते हैं। रविवार के दिन शाम को मंदिर में भक्तों की रौनक होती है और भजन एवं भोजन का समारोह। दशहरा के दिन मंदिर के परिसर में जैसे मेला लग गया हो; उत्सव का माहोल, हिन्दू रीतियों से जुडी सामग्री खरीदने का अवसर, श्री राम की विजय एवं रावण के नाश देखकर लोगों एक दुसरे को बधाई देते हैं। कुछ ही दिनों में दिवाली का आगमन होता है। लक्ष्मी मैया की पूजा करके मिठाइयाँ बांटते हुए मंदिर के सामने खूब पटाके जलाकर उल्हास और उत्साह का माहोल मनाया जाता है। कुछ पलों के लिए ही सही सभी नाटिंन्ग्हम शहर में अपने अपने गाँव की महक पाकर महसूस करते हैं की अब यह उनका अपना घर हो गया है। अब वे नाटिंन्ग्हम के लिए अजनबी नहीं रहे।
ऐसा लगता है की इस विदेशी शहर में अपनी संस्कृति के रंग उछालकर, प्रेम भाईचारे और सद्भावना का रस घोलकर हमने नाटिंन्ग्हम को अपना लिया और इस सुन्दर शहर ने हमें।