प्रेमचंदजी की सुन्दर लघुकथाओं में से यह एक श्रेष्ठ कथा है। एक शिक्षक किस तरह भौतिक जीवन से दूर जाकर विद्या देने की प्रक्रिया में अपने मूल्यों की खोज करते हैं। वहीँ दूसरी ओर उनकी कक्षा का सबसे शैतान बच्चा सूर्यप्रकाश जिम्मेदारी का बोज सरपर पड़ते ही अपनी इज्जत और जिंदगी को संवारने में कामयाब हो जाता है।
पाठशाला के नियमों का उल्लंघन करने मे तथा शिक्षकों को उल्टा डराने में सूर्यप्रकाश माहेर था। मगर जब उसका छोटा ममेरा भाई मोहन साथ रहने लगा तो भाई के भरोसे ने सूर्यप्रकाश के चाल चलन में आसानी से परिवर्तन कर दिखलाया। उसके निःसन्देह प्रेम और आदर से सूर्यप्रकाश मजबूर होता है। शैतानी बंद कर सुलझे हुए जिम्मेदार आदर्शों का पालन करने लगता है। पढ़ लिखकर कलेक्टर बन जाता है और जिंदगी के एक मोड़ पर अपने उसी पुराने शिक्षक के समक्ष एक छोटे से गाँव में खड़ा होता है, फिर मुलाकात पुरानी यादों को ताजा करती है। किन्तु इस बदलाव में एक शिकार होता है उसका छोटा भाई जो सूर्यप्रकाश को रिझाने के मक्साद में अत्याधिक श्रम उठाकर बीमारी में चल बस्ता है। अपनी आहुति से सूर्यप्रकाश को संवारता है।
दूसरी ओर शिक्षक राह में आए उप्युक्तियों से खूब उन्नति करते हैं और नाम कमाते हैं। परन्तु सामाजिक कार्यों में अक्सर अछे से अच्छे लोग राजनीति और छाल कपट का शिकार होते हैं। योग्यता के बावजूद भाग्य साथ नहीं देता। ऐसी ही निराशाजनक परिस्थितियों एवं पत्नी की मौत के कारण वे सब कुछ छोड़ कर उसी गाँव में पढ़ाना शुरू करते हैं। गाँव के मासूम बच्चों को पढ़ाकर, नैसर्गिक सौंदर्य की आड़ में दुबारा सुख शान्ति अनुभव करते हैं। अबकी बार जब उनकी सूर्यप्रकाश से मुलाकात होती हिया तब दोनों की विचार धरा और जीवन मूल्यों में ठीक विपरीत फर्क आ गया है। सूर्यप्रकाश सामाजिक मूल्यों और रीतियों के अनुशासन को जान गया है वहीँ शिक्षक व्यक्तिगत आजादी और स्वतन्त्र विचारों का महत्व भी अनुभव से पहचान गए हैं।
अयोग्य शिक्षकों के चलते शिक्षा प्रणाली पर बड़ा बुरा असर पड़ता है। इस विषय पर भी कुछ अमूल्य मायने प्रेमचंदजी ने स्पष्ट किये हैं।
पाठशाला के नियमों का उल्लंघन करने मे तथा शिक्षकों को उल्टा डराने में सूर्यप्रकाश माहेर था। मगर जब उसका छोटा ममेरा भाई मोहन साथ रहने लगा तो भाई के भरोसे ने सूर्यप्रकाश के चाल चलन में आसानी से परिवर्तन कर दिखलाया। उसके निःसन्देह प्रेम और आदर से सूर्यप्रकाश मजबूर होता है। शैतानी बंद कर सुलझे हुए जिम्मेदार आदर्शों का पालन करने लगता है। पढ़ लिखकर कलेक्टर बन जाता है और जिंदगी के एक मोड़ पर अपने उसी पुराने शिक्षक के समक्ष एक छोटे से गाँव में खड़ा होता है, फिर मुलाकात पुरानी यादों को ताजा करती है। किन्तु इस बदलाव में एक शिकार होता है उसका छोटा भाई जो सूर्यप्रकाश को रिझाने के मक्साद में अत्याधिक श्रम उठाकर बीमारी में चल बस्ता है। अपनी आहुति से सूर्यप्रकाश को संवारता है।
दूसरी ओर शिक्षक राह में आए उप्युक्तियों से खूब उन्नति करते हैं और नाम कमाते हैं। परन्तु सामाजिक कार्यों में अक्सर अछे से अच्छे लोग राजनीति और छाल कपट का शिकार होते हैं। योग्यता के बावजूद भाग्य साथ नहीं देता। ऐसी ही निराशाजनक परिस्थितियों एवं पत्नी की मौत के कारण वे सब कुछ छोड़ कर उसी गाँव में पढ़ाना शुरू करते हैं। गाँव के मासूम बच्चों को पढ़ाकर, नैसर्गिक सौंदर्य की आड़ में दुबारा सुख शान्ति अनुभव करते हैं। अबकी बार जब उनकी सूर्यप्रकाश से मुलाकात होती हिया तब दोनों की विचार धरा और जीवन मूल्यों में ठीक विपरीत फर्क आ गया है। सूर्यप्रकाश सामाजिक मूल्यों और रीतियों के अनुशासन को जान गया है वहीँ शिक्षक व्यक्तिगत आजादी और स्वतन्त्र विचारों का महत्व भी अनुभव से पहचान गए हैं।
अयोग्य शिक्षकों के चलते शिक्षा प्रणाली पर बड़ा बुरा असर पड़ता है। इस विषय पर भी कुछ अमूल्य मायने प्रेमचंदजी ने स्पष्ट किये हैं।